बजरंग बाण

स्तोत्र - मंत्र  > हनुमान स्तोत्र Posted at 2018-11-03 03:38:15
बजरंग बाण अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनाम अग्रगण्यम्। सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिं प्रियभक्तं वातजातं नमामि।। निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करै सनमान। तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान।। जय हनुमन्त सन्त हितकारी। सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी।। जन के काज विलंब न कीजै। आतुर दौरि महासुख दीजै।। जैसे कूदि सिंधु महि पारा। सुरसा बदन पैठि विस्तारा।। आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुरलोका।। जाय विभीषन को सुख दीन्हा। सीता निरखि परम पद लीन्हा।। बाग उजारि सिंधु महँ बोरा। अति आतुर यमकातर तोरा।। अक्षय कुमार मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा।। लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुरपुर महँ भई।। अब विलंब केहि कारन स्वामी। कृपा करहु उर अन्तर्यामी।। जय जय लखन प्रान के दाता। आतुर होई दुख करहु निपाता।। जय गिरधर जय जय सुखसागर। सूर समूह समरथ भटनागर।। ऊँ हनु हनु हनु हनुमंत हठीलै। बैरिहि मारु वज्र की कीलै।। गदा वज्र लै बैरिहिं मारो। महाराज प्रभुदास उबारो।। ऊँ कार हुँकार महाप्रभु धावो। वज्र गदा हनु विलंब न लावो।। ऊँ हीं हीं हीं हनुमंत कपीसा। ऊँ हुँ हुँ हुँ हनु अरि उर शीसा।। सत्य होहु हरि शपथ पायके। राम दूत धरू मारु जायके। जय जय जय हनुमन्त अगाधा। दुख पावत जन केहि अपराधा।। पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत कछु दास तुम्हारा। बन उपवन मग गिरि गृह माहिं। तुमरे बल हम डरपत नाहीं। पाँय परौं कर जोरि मनावौं। यहि अवसर अब केहि गेहरावौं।। जय अंजनिकुमार बलवन्ता। संकरसुवन बीर हनुमन्ता।। बदन कराल काल–कुल–घालक। राम–सहाय सदा प्रतिपालक।। भू–प्रेत, पिसाच, निसाचर। अग्नि बेताल काल मारी मर।। इन्हें मारु, तोहि सपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की। जनक सुता हरि दास कहावो। ताकी शपथ विलंब न लावो।। जय–जय–जय धुनि होत आकासा। सुमिरत होय दुसह दुख नासा।। चरन शरण करि जोरि मनावौं। यहि औसर अब केहि गेहरावौं।। उठु, उठु, चलु, तोहि राम दोहाई। पाँय परौं, कर जोरि मनाई।। ऊँ चं चं चं चं चपल चलंता। ऊँ हनु हनु हनु हनु हनु हनुमन्ता।। ऊँ हं हं हांक देत कपि चंचल। ऊँ सं सं सहमि पराने खल–दल।। अपने जन को तुरंत उबारौ। सुमिरत होय आनंद हमारौ।। यह बजरंग–बाण जेहि मारै। ताहि कहौ फिरि कवन उबारै।। पाठ करै बजरंग बाण की। हनुमत रक्षा करैं प्राण की।। यह बजरंग–बाण जो जापैं। तासों भूत–प्रेत सब काँपैं।। धूप देय जो जपै हमेशा। ताके तन नहिं रहे कलेशा।। प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै, सदा धरै उर ध्यान। तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान।।

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