ओम जय जगदिश हरे

आरती  > विष्णु आरती Posted at 2018-03-28 07:54:49
विष्णूची आरती ओम जय जगदिश हरे स्वामी जय जगदिश हरे । भक्त जनों के संकट, दासजनो कें संकट क्षण में दूर करे ॥ धृ. ॥ जो ध्यावे फल पावे दु:ख विनसे मनका । स्वामी दु:ख विनसे मनका । सुख संपति घर आवे, कष्ट मिटे तनका ॥ ओम. ॥१॥ माता पिता तुम मेरे शरण पडूं मैं किसकी । स्वामी शरण पडूं मैं किसकी । तुम बिन और न दुजा । दीनप्रभो और न दुजा आस करु किसकी । तुम पूरण-परमात्मा तुम अंतर्यामी । स्वामी तुम अंतर्यामी । परब्रह्म परमेश्वर तुम सेवक-स्वामी ॥ ओम्‌ ॥ २ ॥ तुम करुणाके सागर तुम पालन करता ॥ स्वामी तुम पालन करता । मैं मूरख फलकामी मै सेवक तुम स्वामी । कृपा करो स्वामी । विषयविकार मिटाओ पाप हरो देवा । स्वामी पाप हरो देवा । श्रद्धा भक्ति बढाओ संतनकी सेवा ॥ ओम् ॥३ ॥ तनमनधन है तेरा स्वामी सबकुछ है तेरा । तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा ॥ ओम ॥ ४ ॥ दिनबंधु दुखहरता तुम ठाकुर मेरे ॥ स्वामी तुम रक्षक मेरे । अपने हात उठाओ अपनी शरण बिठाओ द्वार खडा तेरे ॥ ओम. ॥ ५ ॥

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