कामाक्षी स्तोत्र

स्तोत्र - मंत्र  > देवी स्तोत्र Posted at 2018-10-09 16:35:39
कामाक्षी  स्तोत्रम् कल्पानोकह पुष्प जाल विलसन्नीलालकां मातृकां कान्तां कञ्ज दलेक्षणां कलि मल प्रध्वंसिनीं कालिकाम् । काञ्ची नूपुर हार दाम सुभगां काञ्ची पुरी नायिकां कामाक्षीं करि कुम्भ सन्निभ कुचां वन्दे महेश प्रियाम् ॥१॥ काशाभांशुक भासुरां प्रविलसत् कोशातकी सन्निभां चन्द्रार्कानल लोचनां सुरुचिरालङ्कार भूषोज्ज्वलाम् । ब्रह्म श्रीपति वासवादि मुनिभिः संसेविताङ्घ्रि द्वयां कामाक्षीं गज राज मन्द गमनां वन्दे महेश प्रियाम् ॥२॥ ऐं क्लीं सौरिति यां वदन्ति मुनयस्तत्त्वार्थ रूपां परां वाचाम् आदिम कारणं हृदि सदा ध्यायन्ति यां योगिनः । बालां फाल विलोचनां नव जपा वर्णां सुषुम्नाश्रितां कामाक्षीं कलितावतंस सुभगां वन्दे महेश प्रियाम् ॥३॥ यत् पादाम्बुज रेणु लेशम् अनिशं लब्ध्वा विधत्ते विधिर् विश्वं तत् परिपाति विष्णुरखिलं यस्याः प्रसादाच्चिरम् । रुद्रः संहरति क्षणात् तद् अखिलं यन्मायया मोहितः कामाक्षीं अति चित्र चारु चरितां वन्दे महेश प्रियाम् ॥४॥ सूक्ष्मात् सूक्ष्म तरां सुलक्षित तनुं क्षान्ताक्षरैर्लक्षितां वीक्षा शिक्षित राक्षसां त्रि भुवन क्षेमङ्करीम् अक्षयाम् । साक्षाल्लक्षण लक्षिताक्षर मयीं दाक्षायणीं सक्षिणीं कामाक्षीं शुभ लक्षणैः सुललितां वन्दे महेश प्रियाम् ॥५॥ ओङ्काराङ्गण दीपिकाम् उपनिषत् प्रासाद पारावतीम् आम्नायाम्बुधि चन्द्रिकाम् अध तमः प्रध्वंस हंस प्रभाम् । काञ्ची पट्टण पञ्जराऽऽन्तर शुकीं कारुण्य कल्लोलिनीं कामाक्षीं शिव कामराज महिषीं वन्दे महेश प्रियाम् ॥६॥ ह्रीङ्कारात्मक वर्ण मात्र पठनाद् ऐन्द्रीं श्रियं तन्वतीं चिन्मात्रां भुवनेश्वरीम् अनुदिनं भिक्षा प्रदान क्षमाम् । विश्वाघौघ निवारिणीं विमलिनीं विश्वम्भरां मातृकां कामाक्षीं परिपूर्ण चन्द्र वदनां वन्दे महेश प्रियाम् ॥७॥ वाग् देवीति च यां वदन्ति मुनयः क्षीराब्धि कन्येति च क्षोणी भृत् तनयेति च श्रुति गिरो याम् आमनन्ति स्फुटम् । एकानेक फल प्रदां बहु विधाऽऽकारास्तनूस्तन्वतीं कामाक्षीं सकलार्ति भञ्जन परां वन्दे महेश प्रियाम् ॥८॥ मायाम् आदिम् कारणं त्रि जगताम् आराधिताङ्घ्रि द्वयाम् आनन्दामृत वारि राशि निलयां विद्यां विपश्चिद् धियाम् । माया मानुष रूपिणीं मणि लसन्मध्यां महामातृकां कामाक्षीं करि राज मन्द गमनां वन्दे महेश प्रियाम् ॥९॥ कान्ता काम दुधा करीन्द्र गमना कामारि वामाङ्क गा कल्याणी कलितावतार सुभगा कस्तूरिका चर्चिता कम्पा तीर रसाल मूल निलया कारुण्य कल्लोलिनी कल्याणानि करोतु मे भगवती काञ्ची पुरी देवता ॥१०॥

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